आज आप सब के साथ फ़ैज़ की शख़सियत का एक मुख्तलिफ़ पहलू बाँटने जा रही हूँ. एक ऐसा पहलू जिससे बहुत कम लोग वाक़िफ़ होंगे. उर्दू शेर-ओ-सुख़न में फ़ैज़ को जो मुक़ाम हासिल है उसे तो पूरी दुनिया सलाम करती है, पर क्या आप जानते हैं फ़ैज़ ने पंजाबी और अंग्रेज़ी में भी लिखा है.
आज आपके लिये फ़ैज़ की लिखी हुई एक पंजाबी नज़्म ले कर आयी हूँ "रब्बा सच्चिया तूँ ते आखिया सी" जो उनके मजमुए "नक्श-ए-फ़रियादी" से ली है. यूँ तो फ़ैज़ ने पंजाबी में बहुत ज़्यादा नहीं लिखा है, क्यूँकि उनका मानना था कि पंजाबी में इतना कुछ अच्छा पहले ही लिखा जा चुका है कि उनके सामने वो और क्या लिखें. फ़ैज़ बुल्लेशाह के लेखन से बहुत प्रभावित थे.
भाषा भले ही बदली हो पर फ़ैज़ के तेवर नहीं बदले. अपनी इस नज़्म में फ़ैज़ ने भगवान से शिकायत करते हुए कहा है कि उसने इन्सान को इस धरती का राजा बना के भेजा था पर उसे यहाँ भेजने के बाद वो इन्सान को बिलकुल भूल गया, कभी इस बात कि कोई खोज-ख़बर नहीं ली कि वो इस धरती पर कैसे जी रहा है. आइये पढ़ते हैं फ़ैज़ की सच्चे रब से की हुई इस अर्ज़ी को.
रब्बा सच्चिया तूँ ते आखिया सी
जा ओए बंदिया जग दा शाह हैं तूँ
साडियाँ नेहमताँ तेरियाँ दौलताँ ने
साडा नैब ते आलीजाह है तूँ
एस लारे ते टोर कद पुछिया ई
कीह ऐस नमाणे ते बीतियाँ ने
कदी सार वी लई ओ रब साइयाँ
तेरे शाह नाल जग की कीतियाँ ने
किते धौंस पुलिस सरकार दी ए
किते धान्दली माल पटवार दी ए
ऐंवें हडडाँ'च कल्पे जान मेरी
जिंवें फाही च' कूंज कुरलावन्दी ए
चंगा शाह बनाया ई रब साइयाँ
पोले खान्देयाँ वार न आंवदी ए
मैंनूँ शाही नईं चाहीदी रब मेरे
मैं ते इज़्ज़त दा टुक्कड़ मंगनाँ हाँ
मैंनूँ ताँहग नईं, महलाँ माड़ीयाँ दी
मैं ते जीवीं दी नग्गर मंगनाँ हाँ
मेरी मन्ने ते तेरियाँ मैं मन्नां
तेरी सौंह जे इक वी गल्ल मोडां
जे इह मंग नईं पुचदी तैं रब्बा
फेर मैं जावाँ ते रब कोई हौर लोडां
-- फ़ैज़
इन्टरनेट पर मौजूद इस नज़्म के अंग्रेज़ी अनुवाद और जो थोड़ी बहुत पंजाबी हमें समझ आती है उसे मिला जुला कर ये हिंदी अनुवाद करने की कोशिश करी है हमने, शायद आपको ये नज़्म समझने में मदद मिले. हालांकि इस अनुवाद में सुधार की पूरी गुंजाइश है और आप सब से ये गुज़ारिश है कि अगर कोई इसका बेहतर हिंदी अनुवाद कर सकता है तो कृपया अनुवाद कर के हमें भेज दे. तब तक इसी अनुवाद से इस नज़्म को समझने कि कोशिश करिये :)
हे सच्चे परमेश्वर, तुमने ही कहा था
जाओ, ओ आदमी, तुम पृथ्वी के राजा हो
हमारी कृपा और आशीर्वाद तुम्हारे साथ हैं
तुम हमारे डिप्टी और वाइसराय हो
मुझे इस वादे के साथ भेजने के बाद क्या तुमने कभी पूछा
कि मुझ गरीब पे क्या बीत रही है ?
ओ दुनिया के रचयिता, क्या तुमने कभी ये जाने की कोशिश करी
कि तुम्हारे इस राजा के साथ इस दुनिया ने क्या करा ?
कहीं पुलिस वालों का आतंक है
कहीं राजस्व विभाग में धोखाधड़ी है
मेरी आत्मा मेरी हड्डियों की बेडि़यों में जकड़ी हुई है
जाल में फंसे एक चीखते हुए पक्षी की तरह.
अच्छा राजा बनाया मुझे ओ भगवान तुमने
मैंने इतनी मार खायी है कि मैं उसकी गिनती भी नहीं कर सकता
मुझे शासन नहीं चाहिये ओ मेरे भगवान
मैं सिर्फ इज्ज़त से कमाई हुई रोटी चाहिये
मुझे किसी महल की ख़्वाहिश नहीं
मुझे सिर्फ़ सर छुपाने के लिये एक छत चाहिये
अगर आप मेरा अनुरोध स्वीकार करेंगे तो मैं भी आपकी बात मानूँगा
आपकी कसम मैं किसी भी बात से नहीं मुकरूँगा
लेकिन, हे भगवान, अगर तुम्हें ये दलील स्वीकृत नहीं है
तो फिर मैं जाऊँ और किसी और भगवान को खोज के लाऊँ
जितना मुख्तलिफ़ फ़ैज़ का ये अंदाज़ है उतना ही जुदा है नहीद सिद्दीकी जी का फ़ैज़ को श्रद्धांजलि देने का ये तरीका. आप भी देखिये और आनंद लीजिये फ़ैज़ की इस नज़्म पर मंत्रमुग्ध कर देने वाले इस कत्थक नृत्य का.
इस ख़ूबसूरत प्रस्तुति के बाद आइये सुनते हैं इस नज़्म को टीना सानी जी की भावपूर्ण आवाज़ में, "कोक स्टूडियो" नाम के एक पाकिस्तानी टेलीविज़न कार्यक्रम में दिये हुए लाइव परफौरमेंस से.
This entry was posted
on
February 4, 2011
at
Friday, February 04, 2011
and is filed under
नक्श-ए-फ़रियादी
,
पंजाबी नज़्म
. You can follow any responses to this entry through the
comments feed
.
आज मिस्र में जो हालत हैं उस पर फैज़ की बहुत सी नज़्म सटीक बैठ रहे हैं.... सच्चा शायर अपने कहन के कारण सदियों तक जिंदा रहता है... चाहे ग़ालिब हों जिन्होंने इश्क को कहा था "देखना मेरे बाद यह बला किसके घर जाएगा" या फिर फैज़ का यह कहना ... "बस नाम रहेगा अल्ला का वो हाज़िर भी है गाइब भी, नाज़िर भी है मंज़र भी"
मेरा भी सलाम... फैज़ से मुहब्बत बढती जी जा रही है... शुक्रिया
बहुत उम्दा शेयरिंग, ॠचा जी… फ़ैज़ साहब के इस नये रंग से वाकिफ़ कराने के लिये बहुत आभार। गहरी से गहरी और गम्भीर से गम्भीर बात कहते वक्त फ़ैज़ साहब का सटीक और बेतकल्लुफ़ अन्दाज़ सीधे दिल तक पहुँचता है।
Haan! aapke Faiz saa'b...Latest two post padhi...reaction kaise kya ho...kuch samajh nahi aata...Kuch bol sakoon aisi haisiyat nahi hamari...Itni mehnat karti ho...so bas is comment ko meri attendance hi mano yahan ....is se zyada kuch na kah payenge ham
ऋचा - अपने बारे में क्या बताऊँ आपको... नवाबों के शहर लखनऊ में पली बढ़ी एक आम लड़की हूँ, पेशे से एक सॉफ्टवेर इंजिनियर. लेखिका नहीं हूँ सो शब्दों से खेलना नहीं आता पर सराहना ज़रूर आता है और ज़िंदगी की छोटी छोटी चीज़ों में ख़ुशियाँ तलाशना आता है... बच्चों की मासूम किलकारी, फूलों की ख़ुश्बू, प्रकृति की शांति, रंग बिरंगी तितलियाँ, हवा में उड़ते ग़ुब्बारे, बारिश की बूँदें, मिट्टी की सौंधी सी महक... बरबस ही हमें अपनी ओर खींच लेते हैं...
मेरा पूरा प्रोफाइल देखें