tag:blogger.com,1999:blog-7592286482463845802.post5015448099028380078..comments2023-07-24T17:33:21.976+05:30Comments on भीगी है रात "फ़ैज़" ग़ज़ल इब्तिदा करो...: इक तमन्ना सताती रही रात भर...richahttp://www.blogger.com/profile/17341853830091317236noreply@blogger.comBlogger7125tag:blogger.com,1999:blog-7592286482463845802.post-3882990503605463862011-02-04T15:25:02.157+05:302011-02-04T15:25:02.157+05:30इस हौसला अफज़ाई के लिये आप सभी का बहुत आभार...
रवि...इस हौसला अफज़ाई के लिये आप सभी का बहुत आभार...<br />रवि जी फ़ैज़ की सौवीं वर्षगाँठ हो और हम सब मिल के उसे ना मनाएँ ऐसा कैसे हो सकता है...<br />आप सभी से ये गुज़ारिश है की फ़ैज़ के बारे में जानकारी सांझा करते रहिये इस ब्लॉग के माध्यम से और अपनी तरफ़ से हम भी कोशिश करेंगे की अब से ले कर १३ फरवरी यानी फ़ैज़ के जन्मदिन तक कम से कम हर दूसरे दिन कोई पोस्ट डालें...<br />तो आप सब यूँ ही आते रहिये फ़ैज़ की इस महफ़िल को आबाद करने और हम सब मुरीद मिल के मनायेंगे फ़ैज़ की जन्मशती :)richahttps://www.blogger.com/profile/17341853830091317236noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7592286482463845802.post-46761235390973490872011-02-03T15:58:01.578+05:302011-02-03T15:58:01.578+05:30आपका प्रस्तुतीकरण और आपका अंदाज मन को भाता है .......आपका प्रस्तुतीकरण और आपका अंदाज मन को भाता है ......यहाँ आकर चैन और सकूँ मिलना अवश्यम्भावी है ....आपका आभार ऋचा जी ..इस सार्थक प्रयत्न के लिए ..आशा है आप आगे भी हमें अनुग्रहित करती रहेंगी ....शुक्रियाकेवल रामhttps://www.blogger.com/profile/04943896768036367102noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7592286482463845802.post-71340097172560645112011-02-01T23:14:00.666+05:302011-02-01T23:14:00.666+05:30दो बड़े शायरों की खूबसूरत ग़ज़लों से मिलवाने का शुक्...दो बड़े शायरों की खूबसूरत ग़ज़लों से मिलवाने का शुक्रिया...........आनंद आ गया !'साहिल'https://www.blogger.com/profile/13420654565201644261noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7592286482463845802.post-46279726235077635262011-02-01T20:35:07.059+05:302011-02-01T20:35:07.059+05:30आपकी मेहनत और बात कहने का सलीका वाकई लाजवाब है,ॠचा...आपकी मेहनत और बात कहने का सलीका वाकई लाजवाब है,ॠचा जी। इतने उम्दा पोस्ट्स के लिये दुआएँ आपको। फ़ैज़ साहब अपने व्यवहार में बहुत ही शालीन थे पर साथ ही बहुत दृढ विचारों के शख्स थे। आगामी 13 फ़रवरी को फ़ैज़ साहब कि जन्मशती है। आपको और फ़ैज़ साहब के सारे मुरीदों को उनकी सौवीं वर्षगाँठ बहुत बहुत मुबारक हो।Ravi Shankarhttps://www.blogger.com/profile/08004933931335889834noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7592286482463845802.post-67554468663036962622011-02-01T17:09:08.019+05:302011-02-01T17:09:08.019+05:30शुक्रिया साग़र... सही कहा आपने "कुछ लोग अलफ़ा...शुक्रिया साग़र... सही कहा आपने "कुछ लोग अलफ़ाज़ के मजबूत घोड़े होते हैं."... फ़ैज़ अल्फाजों के जिनते मज़बूत थे दिल से उतने ही विनम्र और शालीन थे... बहुत कम लोगों में ऐसी शालीनता देखने को मिलती है वो भी तब जब वो अपने जीते जी इतनी क़ामयाबी हासिल कर लें... हाल ही में फ़ैज़ पर काफ़ी कुछ पढ़ा और सुना जो आने वाले कुछ दिनों में इस ब्लॉग पर भी शेयर करुँगी आप सबके साथ... फ़ैज़ की विनम्रता की एक झलक इस विडियो में देखी जा सकती है - <a href="http://www.youtube.com/watch?v=byeR0bGG-vw" rel="nofollow">http://www.youtube.com/watch?v=byeR0bGG-vw</a>richahttps://www.blogger.com/profile/17341853830091317236noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7592286482463845802.post-59342964339091159862011-02-01T16:25:37.402+05:302011-02-01T16:25:37.402+05:30हाँ ऑडियो फाइल भेज दें तो शुक्रगुजार रहूँगा...
आप...हाँ ऑडियो फाइल भेज दें तो शुक्रगुजार रहूँगा... <br />आपकी मेहनत की तारीफ पहले भी कर चूका हूँ... बहुत बहुत शुक्रिया...सागरhttps://www.blogger.com/profile/13742050198890044426noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7592286482463845802.post-32044026352562533772011-02-01T16:24:02.380+05:302011-02-01T16:24:02.380+05:30उम्मीद है आपको भी आज की ग़ज़लें उतनी ही पसंद आयेंग...उम्मीद है आपको भी आज की ग़ज़लें उतनी ही पसंद आयेंगी जितनी की हमें पसंद हैं. कैसी लगीं बताइयेगा ज़रूर...<br /><br />एक रेडियो प्रेजेंटर की तरह जब आप ऐसा कुछ पेश करती हैं तो कैसा लग सकता है. कुछ लोग अलफ़ाज़ के मजबूत घोड़े होते हैं. फैज़ भी उन्ही में से एक थे. फार्म शायरी जरूर था लेकिन कई अन्य चीजों पर उनके लेख से भी बहुत मुत्तासिर हुआ हूँ, मसलन अभी हाल ही पढ़ा एक लेख "मशरिक मशरिक है और मगरिब मगरिब में जब उन्होंने एक विदेशी लेखन को उसका और हमें अपना आइना दिखाया तो उनका सरहद समझा जा सकता है जोकि बेसरहद था. <br /><br />उसी सम्बन्ध में ये पता चला जब उन्होंने यहाँ दिल्ली में यह कहा था "अमूमन शायरों को उनके जीते जी इज्ज़त नहीं मिलती लेकिन मैं इस मामले में अपवाद हूँ कि खामखा इतनी इज्ज़त दी जा रही है और इस मुकाबले मैं दुनिया को क्या लौटा रहा हूँ. वे एक फौजी थे लेकिन ऐसी विनम्रता मुश्किल से आती है. कई बने हुए शायर आज भी हैं जो विनम्रता कि खाल ओढ़े चलते हैं और जरुरत मुताबिक इस्तेमाल करते हैं. ऐसे में मंटो भला था जहाँ "शायद" की गुंजाईश नहीं थी.सागरhttps://www.blogger.com/profile/13742050198890044426noreply@blogger.com