यादों के ख़ाशाक * में जागे
शौक़ के अंगारों का जादू
शायद पल-भर को लौट आये
उम्र-ए-गुज़िश्ता *, वस्ल-ए-मन-ओ-तू*
-- फ़ैज़
फ़ैज़ के चाहने वालों के लिये आज का दिन बड़ा ख़ास है. सदी का ये शायर आज पूरे सौ साल का हो गया. पूरी दुनिया आज फ़ैज़ की जन्मशती मना रही है और तह-ए-दिल से सदी के इस सबसे सशक्त शायर को अपनी श्रद्धांजलि दे रही है. कहते हैं कला कि कोई सीमा नहीं होती. फ़ैज़ और उनकी शायरी के प्रति लोगों का प्यार इसे पूर्णतयः सही साबित करता आया है हमेशा से ही. फ़ैज़ के चाहने वाले सिर्फ़ भारत और पाकिस्तान में ही नहीं हैं बल्कि पूरी दुनिया में मौजूद हैं. समूचे विश्व के संदर्भ में देखा जाये तो फ़ैज़ के लेखन को वही इज्ज़त और मुकाम हासिल हैं जो शेक्सपियर, टॉल्सटॉय या टैगोर को हासिल है.
आज से ठीक सौ साल पहले १३ फरवरी १९११ को फ़ैज़ ने सियालकोट के कस्बे काला क़ादिर में जन्म लिया था. काला और क़ादिर नाम के दो भाइयों ने इस कस्बे को बसाया था पर आज यहाँ के रहने वालों ने "फ़ैज़" के नाम पर इसका नाम फ़ैज़ नगर रख दिया है. है कोई और कवि फ़ैज़ के सिवा जिसे आवाम का इतना प्यार मिला हो.
फ़ैज़ की शायरी शब्दों के संगीत को साकार कर देती है. फ़ैज़ के लेखन को इस उपमहाद्वीप के तमाम नामी-गिरामी गायक और गायिकाओं ने अपूर्व सौंदर्य के साथ गाया है. बेग़म अख्तर, नूरजहाँ, मेहदी हसन, इकबाल बानों, फरीदा ख़ानम, टीना सानी, नय्यारा नूर आदि ने फ़ैज़ की शायरी को बड़े ही बेहतरीन तरीके से गाया और प्रस्तुत किया है. ग़ालिब जैसे महान शायर को छोड़ कर बीसवीं सदी के किसी भी और शायर को इतनी बड़ी प्रतिभाएं इतनी बड़ी संख्या में नहीं मिलीं.
कवि, पत्रकार, अनुवादक, फिल्मकार, प्रसारणकर्ता, मार्क्सवादी कार्यकर्ता और लेनिन शान्ति पुरस्कार से सम्मानित "फ़ैज़" अपने जीवनकाल में ही एक इतिहास बन चुक थे. एक बार भारत में "फ़ैज़" कि एक यात्रा के दुरान फ़िराक गोरखपुरी ने कहा था - "फ़ैज़ के समय में भारतवासी कहलाना कितने सौभाग्य की बात थी." यह एक दुर्लभ श्रद्धांजलि है जो एक महान शायर ने दूसरे महान शायर को दी थी. "फ़ैज़" हमारे मध्य हैं और हमेशा रहेंगे.
आज आपने लिये फ़ैज़ की एक बेहद मशहूर ग़ज़ल "आये कुछ अब्र कुछ शराब आये" ले कर आयी हूँ, जिसे अपनी मखमली आवाज़ से नवाज़ा है सुप्रसिद्ध ग़ज़ल गायक मेहदी हसन साहब ने. ये ग़ज़ल फ़ैज़ के दूसरे मजमुए "दस्त-ए-सबा" से ली गई है. तो आइये एक बार फिर सराबोर होते हैं फ़ैज़ कि शायरी के नशे में और जश्न मनाते हैं आज के दिन का. फ़ैज़ के सभी मुरीदों को आज का दिन बहुत बहुत मुबारक़ हो.
आए कुछ अब्र, कुछ शराब आये
उस के बाद आए जो अज़ाब * आये
बाम-ए-मीना * से माहताब * उतरे
दस्त-ए-साक़ी * में आफ़ताब * आये
हर रग-ए-ख़ूँ में फिर चराग़ाँ हो
सामने फिर वो बेनक़ाब आये
उम्र के हर वरक़ पे दिल को नज़र
तेरी मेहर-ओ-वफ़ा * के बाब * आये
कर रहा था ग़म-ए-जहाँ का हिसाब
आज तुम याद बे-हिसाब आये
न गई तेरे ग़म की सरदारी
दिल में यूँ रोज़ इन्क़लाब आये
जल उठे बज़्म-ए-ग़ैर के दर-ओ-बाम
जब भी हम ख़ानमाँ-ख़राब * आये
इस तरह अपनी ख़ामोशी गूँजी
गोया हर सिम्त से जवाब आये
'फ़ैज़' थी राह सर-ब-सर मंज़िल
हम जहाँ पहुँचे कामयाब आये